एक धनवान युवक को खाँसी बहुत रहती थी। कई उपाय किए, कई दवाएँ ली, परन्तु खाँसी जाती नहीं थी। जाती भी कैसे? उसे खट्टी वस्तुएंँ खाने का बड़ा शौक था। खट्टी दही, खट्टी लस्सी, खट्टी चटनी, खट्टी चाट, खट्टा अचार और ऐसी ही कई अन्य वस्तुएँ वह खाता था। खाँसी ठीक कैसे होती?
एक दिन वह एक वैद्य के पास आया और बोला- मुझे बहुत खाँसी रहती है। क्या आप मेरा इलाज कर देंगे?
वैद्य जी अनुभवी थे। खाँसी ठीक करना तो उनके लिए चुटकियों का काम था। बोले- तुम बैठो। मैं अभी दवा देता हूँ।
पर यदि वैद्य जी अनुभवी थे, तो वह भी कोई कम अनुभवी नहीं था, वह जानता था कि दवा देते ही ये खट्टा खाने को मना करेंगे। तो इससे पहले कि वे कुछ कहते, वह बोला- मैं आपकी दवा तो अवश्य ले लूंगा, पर मेरी एक शर्त है। मैं खट्टी वस्तुएँ खाना बन्द नहीं करूँगा।
वैद्य जी समझ गए कि यह जीभ का चटोरा है। सोचा कि यह परहेज नहीं करेगा तो ठीक कैसे होगा? आखिर वे हंस कर बोले- खट्टा खूब खाना, मैंने तुम्हें कब रोका? फिर खट्टा खाने का तो मजा ही कुछ और है। और खाँसी हो और खट्टा खाए, तब तो लाभ ही लाभ है, इसमें नुकसान ही क्या है? खाँसी में खट्टा जो खाए, उसके घर कभी चोरी नहीं होती, उसे कभी कुत्ता नहीं काटता और वह कभी बूढ़ा नहीं होता।
युवक ने यह सुना तो हैरान रह गया। ऐसा सुनना तो दूर, उसने कभी स्वप्न में सोचा तक नहीं था। वह बोला- यह तो आपने बहुत अच्छी बात कही। पर मैं समझा नहीं। आप समझाकर कहिए।
वैद्य जी बोले- देखो! यदि तुम्हें खाँसी है और ऊपर से खट्टा खाने की लत है, तो जल्दी ही तुम्हें कुत्ता खाँसी हो जाएगी, तब तुम रात भर कुत्ते की तरह खाँसते रहोगे। स्वयं भी जागोगे, घर वालों को भी जगाए रखोगे। तो जब सभी जागते हुए ही पड़े रहेंगे, सोएँगे ही नहीं, तो ऐसे घर में चोर आएगा ही कैसे?
और यों लगातार खाँसते-खाँसते जब तुम्हारा शरीर और अधिक निर्बल हो जाएगा, पाँव काँपने लगेंगे, तब तुमसे बिना लाठी के चला नहीं जाएगा। और तुम स्वयं विचार करो कि जिसके हाथ में हर समय लाठी रहेगी उसे कुत्ता कैसे काटेगा?
फिर जब खाँसी से तुम्हारे फेफड़े बिल्कुल ही खत्म हो जाएँगे और शरीर सूख कर काँटा हो जाएगा। तब तुम इस जवानी में ही मर जाओगे, तब तुम्हारे लिए बुढ़ापा आएगा ही कैसे? तो खाँसी में तो खट्टा खाना बहुत लाभदायक है।
यह सब सुन कर वह युवक रोने लगा। वैद्य जी ने बड़े ही प्रेम से उसके सिर पर हाथ फिराया और कहा- मेरे प्यारे बेटे! मेरी बात मानो तो जिद छोड़ दो। कुछ ही दिनों की बात है। जब तक खाँसी पूरी तरह से ठीक न हो जाए, तब तक पूर्ण परहेज रखना ही चाहिए। फिर तो जैसा सामान्यतया सभी खाते हैं, तुम भी खा लेना। बस मात्रा का ध्यान रखना। तब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी।
जैसे खाँसी ठीक होने में खट्टा बाधा है, भवरोग ठीक होने में सांसारिक इच्छाएँ बाधा हैं।
कुछ ही समय की बात है। एक बार भवरोग का उपाय हो जाए, आत्मज्ञान उपलब्ध हो जाए, फिर तो-
“जो इच्छा करिहहु मन माहीं।
हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं॥”