खालिस्तानी बताते हैं कि गुरु गोविंद सिंह से अमृत चखते ही हम शेर हो गए
आओ अब हम बताते हैं इतिहास :-
- गुरु गोविंद सिंह ने सिखों की फौज होते हुए भी अपने बेटों का बदला लेने के लिए एक ऋषि बंदा बहादुर बैरागी ही चुना..
- माता गुजरी और छोटे साहिबजादों की रक्षा के लिए कोई सिख जब आगे नहीं आया, तो बच्चों को दूध पिलाने के लिए बाबा मोती राम मेहरा ने ही बलिदान किया
- बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए जब कोई सिख आगे नहीं आया तो टोडरमल जी ने 78000 सोने की मोहर देकर उनका अंतिम संस्कार किया…
- हिंदु होते हुए जिस गुरु गोविंद (राय) जी ने अपने चार पुत्र वार दिए वहीं उनका पांचवां पुत्र मुगलों के साथ मिलकर काम करने लगा…आज भी खालिस्तानी मुगलो से मिलकर और साठगांठ करके नया देश बनाने की जुगाड़ मे हैं…
- जब अमृतसर स्वर्ण मंदिर पर मुगलों ने कब्जा कर लिया था तब राजा सदाशिव को अपनी सेना के साथ आना पड़ा स्वर्ण मन्दिर फिर से आजाद कराने के लिए…
- 10 गुरुओं में से 1 ही नहीं, 2 ही नहीं, 3 ही नहीं बल्कि सब के सब 10 गुरु हिंदू धर्म से ही हैं…
5 प्यारे हिंदू थे । कोई गैर हिंदू नहीं था…
हम हिंदू हैं, हम वो है जिसने गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी, वीर गोकुला, महाराणा प्रताप, वीर बन्दा वैरागी, पोरस, चंद्रगुप्त मौर्य और लक्ष्मी व चेनम्मा दी…और अगर गिनाने बैठ जाएं तो गिनते ही रह जाओगे ।
सिखों की हिंदुओं की रक्षा, बहादुरी की ज्यादातर कहानियाँ महज कहानियां भर हैं । हर बार हिंदू भी साथ खडे होकर लडे…
हकीकत ये है कि सिख जितना बहादुर और देशभक्त रहे है खालिस्तानी उतना ही कायर और देशद्रोही रहे हैं…आज भी दूसरो की आड लेकर अपनी जंग चला रहे है ।