मन को क्यों समझे

एक बुढिय़ा दूसरे गांव जाने के लिए अपने घर से निकली। उसके पास एक गठरी भी थी। चलते-चलते वह थक गई। थकान की वजह से उसे गठरी का बोझ भारी लगने लगा था। तभी उसने देखा कि पीछे से एक घुड़सवार चला आ रहा है। बुढिय़ा ने उसे आवाज दी। घुड़सवार पास आया और बोला, ‘‘क्या बात है अम्मा, मुझे क्यों बुलाया?’’

बुढिय़ा ने कहा, ‘‘बेटा, मुझे सामने वाले गांव जाना है। बहुत थक गई हूं। गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’’

घुड़सवार ने कहा, ‘‘अम्मा, तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। मुझे तो आगे जाना है। वहां क्या तेरा इंतजार करते थोड़े ही बैठा रहूंगा?’’ 

यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद वह सोचने लगा, ‘‘मैं भी कितना मूर्ख हूं। बुढिय़ा ढंग से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। वह मुझे गठरी दे रही थी। संभव है उसमें कीमती सामान हो। मैं उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता! बेकार ही मैंने उसे मना कर दिया।’’

गलती सुधारने की गरज से वह फिर बुढिय़ा के पास आकर बोला, ‘‘अम्मा, लाओ अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’’ 

किंतु बुढिय़ा ने कहा, ‘‘न बेटा, अब तू जा। मुझे गठरी नहीं देनी।’’  

यह सुन घुड़सवार बोला, ‘‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल! अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। यह उलटी बात तुझे किसने समझाई?’’

बुढिय़ा मुस्कराकर बोली, ‘‘उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि बुढिय़ा की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा है। जब तू लौटकर आया तभी मुझे शक हो गया कि तेरी नीयत में खोट आ गया है।’’ 

    हमारे मनके विचारों की तरंगे सामने वाले के मन पर तुरंत प्रतिबिम्बत होती है…. अत:सदैव अच्छे विचारों, आदर सूचक भावनाओं से, सकारात्मक सोच से सामने वाले के लिये विचार करिये फिर देखिये आपके प्रति लोगों की कैसी अभिव्यक्ति होती है

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